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Body’s Systems Work in Winter: ठंड की शुरुआत हो चुकी है. सुबह और शाम के समय ठंड का एहसास होने लगा है. सर्दी में ठंड लगना एक कॉमन बात है. लोग धीरे-धीरे ठंड के कपड़े निकालने लगे हैं. आपने नोटिस किया होगा कि कुछ लोगों को बहुत ज्यादा ही ठंड लगती है. ऐसा क्यों होता है कि किसी को बहुत ज्यादा ठंड लगती है तो किसी को कम लगती है? क्या है कारण व्यक्ति के खान-पान, लाइफस्टाइल और शरीर की आंतरिक क्षमता से जुड़ा होता है. इस बारे में विस्तार से आइए जानते हैं 

ठंड कैसे लगती है?

मनुष्य को ठंड त्वचा पर सबसे पहले महसूस होती है. इससे उनकी रोएं खड़ी हो जाती हैं और कई बार उंगलियां सुन्न हो जाती हैं. तापमान के बदलने का अहसास सबसे पहले हमारी त्वचा को होता है. हमारी त्वचा के नीचे मौजूद थर्मो-रिसेप्टर नर्व्स दिमाग को ठंड का संदेश भेजती हैं. यह स्किन से निकलने वाली तरंगें दिमाग के हाइपोथैलेमस में पहुंचती हैं. हाइपोथैलेमस शरीर के आंतरिक तापमान और पर्यावरण का संतुलन बनाने में मदद करता है. इस संतुलन के कारण हमारे रोएं खड़े हो जाते हैं और मांसपेशियां सिकुड़ने लगती हैं.

हाइपोथर्मिया के कारण लगती है ज्यादा सर्दी 

जब ठंड लगती है, तो इसका सबसे पहले असर स्किन पर पड़ता है. स्किन के नीचे मौजूद नर्व दिमाग को ठंड लगने का संकेत भेजते हैं, जिससे दिमाग शरीर के अंदर के तापमान को गिरने से रोकता है. दिमाग शरीर के सभी अंगों को मैसेज भेजता है कि तापमान गिर रहा है और उन्हें सुरक्षित रखना चाहिए. इसके बाद शरीर की सभी मांसपेशियां अपनी गति को कम कर देती हैं. हमारा शरीर तापमान के ज्यादा कम हो जाने को बर्दाश्त नहीं कर पाता है. विशेषज्ञों के अनुसार, यदि तापमान बहुत ज्यादा कम हो जाता है तो शरीर के कई अंग काम करना बंद कर देते हैं. कभी-कभी इसके कारण मल्टी ऑर्गन फेलियर हो सकती है जिससे इंसान की मौत भी हो सकती है. इस प्रकार की ज्यादा ठंड को ‘हाइपोथर्मिया’ कहा जाता है, जिससे जान भी जा सकती है.

कंपकंपी आने की वजह

जब हमारे शरीर के अंग धीमी गति से काम करते हैं, तो उनसे अधिक मेटाबॉलिक हीट उत्पन्न होती है. इससे शरीर में अचानक कंपकंपी महसूस होती है. कंपकंपी का मतलब है कि शरीर अंदरी और बाहरी तापमान को संतुलित कर रहा है.

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